✍️ अभिषेक बाजपेयी के क़लम से
आपातकाल भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला अध्याय था, जिसे 25 जून 1975 को लागू किया गया था। लेकिन सवाल यह है कि उस समय की सबसे विवादित और गुप्त भूमिका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की क्यों रही? क्या RSS वास्तव में आपातकाल चाहती थी? इतिहास के पन्नों को पलटें तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं।
✅ RSS की आपातकाल में छुपी भूमिका
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लोकतंत्र की बजाय सत्ता का मोह:
RSS ने कभी भी लोकतंत्र की मजबूती के लिए निर्णायक भूमिका नहीं निभाई। आपातकाल के दौरान जब पूरे देश में नागरिक अधिकारों को कुचला जा रहा था, तब RSS ने कुछ समय तक दिखावे के लिए विरोध किया, लेकिन बाद में इंदिरा गांधी से समझौते के प्रयास भी किए। -
समझौते का खेल:
आपातकाल के शुरुआती महीनों में RSS ने जेल में बंद अपने स्वयंसेवकों को रिहा कराने के लिए गुपचुप तरीके से इंदिरा गांधी से मेल-मुलाकात शुरू की। यहां तक कि इंदिरा जी को पत्र भी लिखा गया, जिसमें निष्ठा दिखाने की बात कही गई। -
जेपी आंदोलन से दूरी:
जब जयप्रकाश नारायण लोकतंत्र बचाने का बिगुल फूंक रहे थे, उस समय RSS ने केवल अपनी राजनीतिक पकड़ बनाने के लिए आंदोलन का हिस्सा बनने का दिखावा किया, लेकिन वास्तव में संघ का मकसद लोकतंत्र नहीं, बल्कि राजनीतिक जमीन तैयार करना था।
❗RSS और NDA की मौन सहमति?
आज जब हम देखते हैं कि भाजपा और संघ लोकतंत्र की दुहाई देते हैं, तो सवाल उठता है कि:
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क्या वह वही संघ नहीं है जिसने आपातकाल के दौरान चुप्पी साध ली थी?
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क्या भाजपा वही राजनीतिक शक्ति नहीं है जो लोकतंत्र की दुहाई देकर सत्ता में है, लेकिन विपक्ष की आवाज़ को दबा रही है?
🔴 आज के दौर में क्यों ज़रूरी है ये सवाल?
आज जब ED, CBI, और IT जैसे संस्थानों का दुरुपयोग हो रहा है, जब विपक्षी नेताओं को जेल में डाला जा रहा है, तो वह माहौल कहीं न कहीं आपातकाल की याद दिलाता है। फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार इंदिरा गांधी नहीं, संघ के इशारे पर काम करने वाली सरकार है।
🔚 निष्कर्ष:
RSS ने आपातकाल का खुला विरोध नहीं किया, क्योंकि वह खुद तानाशाही प्रवृत्ति का समर्थन करती रही है। आज अगर देश में लोकतंत्र पर खतरा है, तो उसका बीज उसी दौर में बोया गया था, जब संघ ने चुपचाप आपातकाल को स्वीकार किया।
🟥 समाजवादी विचारधारा का यह कर्तव्य है कि वह ऐसे छद्म राष्ट्रवाद और सत्ता के खेल का पर्दाफाश करे।
✍️ अभिषेक बाजपेयी
प्रवक्ता, समाजवादी पार्टी
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