हर वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा को मनाया जाने वाला गुरु पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का पावन दिन है। भारतीय संस्कृति में गुरु को परमेश्वर से भी ऊपर स्थान दिया गया है — क्योंकि वही हमें अज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान की ओर ले जाते हैं।
🔱 गुरु का महत्व
"गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥"
कबीरदास जी की इस पंक्ति में गुरु की महत्ता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। गुरु ही वह शक्ति हैं जो शिष्य को सही और गलत की पहचान कराते हैं, जीवन को उद्देश्य और दिशा देते हैं।
📚 गुरु पूर्णिमा का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व
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यह दिन महर्षि वेदव्यास जी की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, जिन्होंने वेदों का संकलन कर मानव जाति को अमूल्य ज्ञान प्रदान किया।
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योग परंपरा में यह दिन विशेष महत्व रखता है। भगवान शिव को आदियोगी और पहले गुरु के रूप में माना जाता है। इस दिन उन्होंने सप्तऋषियों को योग का ज्ञान दिया था।
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बौद्ध परंपरा में, भगवान बुद्ध ने बोधगया में अपने पहले शिष्यों को इसी दिन ज्ञान देना प्रारंभ किया था।
🧘♂️ आधुनिक युग में गुरु
आज के समय में गुरु केवल विद्यालय या मठों में नहीं, बल्कि हर क्षेत्र के योग्य मार्गदर्शक होते हैं। वे शिक्षक हो सकते हैं, माता-पिता, आध्यात्मिक गुरु, या फिर जीवन के अनुभव देने वाले व्यक्ति।
🌸 गुरु पूर्णिमा कैसे मनाएं?
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गुरुओं के चरणों में वंदन करें
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उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें
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अपने जीवन में मिली सीखों को स्मरण करें
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नए संकल्प लें कि हम सदैव सत्य और ज्ञान के मार्ग पर चलेंगे
🕉️ निष्कर्ष
गुरु पूर्णिमा आत्मचिंतन, श्रद्धा और आभार व्यक्त करने का पर्व है। यह हमें याद दिलाता है कि जीवन में ज्ञान और मार्गदर्शन के बिना प्रगति संभव नहीं है।
अपने गुरुओं का सम्मान करें, उनके दिए मार्गदर्शन को आत्मसात करें — यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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