बीजेपी पीडीए से क्यों डर रही है?

 
Abhishek bajpai

बीजेपी पीडीए से क्यों डर रही है?

आज जब देश के गरीब, पिछड़े, दलित, अगड़ा और अल्पसंख्यक समाज को एकजुट कर ‘पीडीए’ (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) के नाम पर एक नया सामाजिक आंदोलन आकार ले रहा है, तब भारतीय जनता पार्टी की बेचैनी साफ देखी जा सकती है। बीजेपी को यह डर सता रहा है कि अगर पीडीए एकजुट हो गया, तो उसके वोटबैंक की दीवारें भरभरा जाएंगी।

बीजेपी बार-बार खुद को डॉ. भीमराव अंबेडकर का सच्चा अनुयायी बताने की कोशिश करती है, लेकिन जब बात असल में बाबा साहेब के सम्मान और विचारों की आती है, तब बीजेपी और उसके नेता चुप्पी साध लेते हैं। एक बड़ा सवाल जो आज भी अनुत्तरित है – अगर बीजेपी को बाबा साहेब अंबेडकर से इतना ही प्रेम है, तो उसके वरिष्ठ नेता अरुण शौरी ने अपनी किताब में बाबा साहेब के लिए आपत्तिजनक शब्द क्यों लिखे?

अरुण शौरी, जो भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं, उन्होंने अपनी पुस्तक "Worshipping False Gods" में डॉ. अंबेडकर को “पाखंडी”, “देशद्रोही” और “अंग्रेजों का गुलाम” कहा है। यह न केवल एक व्यक्ति विशेष पर हमला है, बल्कि उन करोड़ों लोगों की भावनाओं का अपमान है, जो बाबा साहेब को अपना प्रेरणास्त्रोत मानते हैं। सवाल यह है कि बीजेपी आज तक अरुण शौरी की इन अपमानजनक टिप्पणियों से खुद को अलग क्यों नहीं कर पाई? क्या यह बीजेपी की असली सोच नहीं दर्शाता?

जब बाबा साहेब ने देश के दलितों, पिछड़ों और वंचितों को उनके अधिकार दिलाने के लिए जीवनभर संघर्ष किया, तब वे अंग्रेजों के गुलाम कैसे हो सकते हैं? यह कहना न केवल ऐतिहासिक तथ्यों के साथ धोखा है, बल्कि एक सुनियोजित साजिश है, जिससे बाबा साहेब की छवि धूमिल की जाए।

बीजेपी जब बाबा साहेब की मूर्तियाँ लगवाती है, जब संविधान निर्माता कहकर उनका नाम लेती है, तब वह केवल चुनावी लाभ के लिए ऐसा करती है। लेकिन जब कोई उनके सम्मान पर हमला करता है, और वह हमला उनके ही घर से होता है – जैसे अरुण शौरी की किताब – तब पार्टी मौन क्यों हो जाती है?

आज समाज जानना चाहता है:

  • बीजेपी ने आज तक अरुण शौरी की उस किताब से दूरी क्यों नहीं बनाई?

  • क्या बीजेपी मानती है कि बाबा साहेब अंबेडकर अंग्रेजों के गुलाम थे?

  • क्या यह बीजेपी की डबल पॉलिसी नहीं है – एक तरफ वोट के लिए अंबेडकर को पूजना और दूसरी तरफ चुपचाप उनके अपमान को नजरअंदाज करना?

पीडीए का उदय बीजेपी की इसी दोहरी सोच के खिलाफ है। यह एक सामाजिक चेतना का आंदोलन है, जो बाबा साहेब के विचारों को सच में आत्मसात करना चाहता है, न कि केवल नारों और तस्वीरों तक सीमित रखना।

बीजेपी को डर इस बात का है कि अगर पिछड़ा, दलित, अगड़ा और अल्पसंख्यक एकजुट हो गया, तो उसकी राजनीति की नींव हिल जाएगी। इसलिए वह कभी बाबा साहेब के नाम पर इवेंट करती है, तो कभी ऐसे सवालों से भाग जाती है जो उसके असली चेहरे को उजागर कर दें।

देश की जनता अब समझ चुकी है कि बाबा साहेब का अपमान कोई बर्दाश्त नहीं करेगा – चाहे वह किसी किताब में हो या किसी पार्टी की चुप्पी में।

जय भीम! समाजवाद जिंदाबाद!

अभिषेक बाजपेई
प्रवक्ता, समाजवादी पार्टी

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