जानिए, आखिर क्यों बीजेपी साम्प्रदायिक मुद्दे उठा रही है? जानकर होश उड़ जाएंगे!


भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। खासतौर पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर अक्सर आरोप लगता है कि वह चुनावों के दौरान साम्प्रदायिक मुद्दों को भड़काकर ध्रुवीकरण की राजनीति करती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसके पीछे की असली वजह क्या है? आइए जानते हैं कि आखिर क्यों बीजेपी बार-बार हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद जैसे मुद्दों को उठाती है और इसका फायदा किसे होता है।

1. ध्रुवीकरण से वोटबैंक की राजनीति

बीजेपी का सबसे बड़ा हथियार ‘ध्रुवीकरण’ है। जब भी चुनाव नजदीक आते हैं, सांप्रदायिक मुद्दों को उछाला जाता है ताकि समाज दो हिस्सों में बंट जाए। इस ध्रुवीकरण का सीधा फायदा बीजेपी को मिलता है, क्योंकि हिंदू वोट एकजुट होकर उनके पक्ष में जाने लगता है। खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, और गुजरात जैसे राज्यों में इस रणनीति को कई बार आजमाया गया है।

2. विकास के मुद्दों से ध्यान हटाना

जब बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार जैसे असली मुद्दे हावी होने लगते हैं और सरकार को जवाब देना मुश्किल होता है, तो अचानक ही हिंदू-मुस्लिम, लव जिहाद, राम मंदिर, समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दे उठाए जाने लगते हैं। इससे जनता असल समस्याओं से भटक जाती है और भावनात्मक मुद्दों में उलझ जाती है।

3. मीडिया को मोहरा बनाना

गौमांस विवाद हो, हिजाब बैन हो या किसी समुदाय विशेष पर हमले की खबरें—हर बार इन मामलों को मीडिया में खूब उछाला जाता है। कई बार गोदी मीडिया भी इन मुद्दों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाती है ताकि असली मुद्दे पीछे छूट जाएं।

4. कट्टरवादी छवि मजबूत करना

बीजेपी के लिए हिन्दू राष्ट्रवाद की छवि बनाए रखना बेहद ज़रूरी है। पार्टी का एक बड़ा समर्थक वर्ग ऐसा है जो कट्टर हिंदुत्व की विचारधारा से जुड़ा हुआ है। ऐसे में बीजेपी को बार-बार यह साबित करना पड़ता है कि वह हिंदुओं की ही पार्टी है और उनके हितों की रक्षा कर रही है। यही वजह है कि हर चुनाव से पहले किसी न किसी साम्प्रदायिक विवाद को हवा दी जाती है।

5. नए विरोधियों को कमजोर करना

विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, और क्षेत्रीय दलों को कमजोर करने के लिए बीजेपी उन पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाती है। इसका सीधा असर हिंदू मतदाताओं पर पड़ता है, जिससे वे बीजेपी के पक्ष में वोट डालने के लिए प्रेरित होते हैं।

क्या यह रणनीति हमेशा कारगर रहेगी?

हालांकि, यह रणनीति बीजेपी को कई चुनावों में फायदा पहुंचा चुकी है, लेकिन अब जनता भी जागरूक हो रही है। सोशल मीडिया और स्वतंत्र पत्रकारिता की वजह से कई लोग समझ चुके हैं कि ये मुद्दे महज चुनावी स्टंट हैं। अगर लोग विकास, रोजगार और शिक्षा जैसे असली मुद्दों पर ध्यान देने लगें, तो यह राजनीति ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाएगी।

निष्कर्ष

बीजेपी द्वारा साम्प्रदायिक मुद्दों को बार-बार उठाने का मकसद सिर्फ और सिर्फ चुनावी फायदा उठाना है। जब भी सरकार की विफलताएं उजागर होने लगती हैं, तब ये भावनात्मक मुद्दे जनता के सामने परोसे जाते हैं। अब यह जनता पर निर्भर करता है कि वह इन मुद्दों के जाल में फंसती है या असली समस्याओं पर सरकार से सवाल पूछती है।

आप क्या सोचते हैं? क्या बीजेपी की यह रणनीति सफल होती रहेगी या लोग अब असली मुद्दों पर ध्यान देंगे? अपनी राय कमेंट में जरूर दें! 🚩



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